क्या आप जानते है शिव मंदिर में नंदी की स्थापना गर्भ-गृह के बाहर क्यों होती है ?
Nandi ( Sanskrit: नन्दी, Tamil: நந்தி, Telugu: న౦ది), is the name for the bull which serves as the mount (Sanskrit: Vahana) of the god Shiva and as the gate keeper of Shiva and Parvati, and in Hindu mythology. He is the chief guru of eighteen masters(18 siddhas) including Patanjali and Thirumular. Temples venerating Shiva display stone images of a seated Nandi, generally facing the main shrine. There are also a number of temples dedicated solely to Nandi.
The application of the name Nandi to the bull (Sanskrit: vṛṣabha) is in fact a development of recent centuries, as Gouriswar Bhattacharya has documented in an illustrated article entitled "Nandin and Vṛṣabha". The name Nandi was earlier widely used instead for an anthropomorphic deity who was one of Shiva's two door-keepers, the other being Mahākāla. The doorways of pre-tenth-century North Indian temples are frequently flanked by images of Mahākāla and Nandi, and it is in this role of Shiva's watchman that Nandi figures in Kālidāsa's poem the Kumārasambhava.
यह बात देखने में अटपटी लग सकती है कि शिव परिवार का महत्वपूर्ण और अभिन्न हिस्सा होने के बावजूद असीम शक्तियों के स्वामी नंदी शिव परिवार के साथ न होकर गर्भ-गृह के बाहर क्यों स्थापित होते हैं. इसके पीछे भी रहस्य है. नंदी गर्भ-गृह के बाहर खुली आंखों की अवस्था में समाधि की स्थिति में होते हैं, लेकिन उनकी दृष्टि शिव की ओर ही रहती है.
महाभारत के रचयिता के अनुसार खुली आंखों से ही आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और इस आत्मज्ञान के सहारे जीवन मुक्ति पाना सरल हो जाता है. शिव दर्शन से पहले नंदी के दर्शन करना शास्त्रसम्मत है, ताकि व्यक्ति अपने अहंकार सहित समस्त बुराइयों से मुक्त हो जाए. मद, मोह, छल, कपट और ईर्ष्या जैसे अपने विकारों को नंदीश्वर के चरणों में त्याग कर वह शिव के पास जाए और उनकी कृपा प्राप्त करे.
नंदी का अर्थ है— प्रसन्नता यानी जिनके दर्शन मात्र से ही समस्त दुख दूर हो जाते हों. नंदी जीवन में प्रसन्नता और सफलता के प्रतीक हैं. ऋषि शिलाद के अयोनिज पुत्र नंदी शिव के ही अंश हैं, इसलिए अजर-अमर हैं.
नंदी के सींग विवेक और वैराग्य के प्रतीक हैं. दाहिने हाथ के अंगूठे और तजर्नी से नंदी के सींगों को स्पर्श करते हुए शिव के दर्शन किए जाते हैं. नंदी की कृपा के बिना शिव कृपा संभव नहीं. आपने मंदिरों में अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग नंदी के कान के पास जाकर कुछ कहते हैं. यह और कुछ नहीं, एक तरह से सिफारिश की गुहार लगाना ही है |
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