मोहिनी एकादशी, महत्व व कथा
वैशाख मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार यह तिथी सब पापों को हरने वाली और उत्तम है। इस दिन जो व्रत रहता है उसके प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पापों से छुटकारा पा जाते हैं।
कथा
सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम का नगर था। वहां धृतिमान नामक राजा राज्य करता था। उसी नगर में एक वैश्य रहता था, उसका नाम था धनपाल । वह भगवान विष्णु का परम भक्त था और सदा पुण्यकर्म में ही लगा रहता था। उसके पाँच पुत्र थे- सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत तथा धृष्ट्बुद्धि । धृष्ट्बुद्धि पांचवा था। वह सदा पाप कर्म में लिप्त रहता था। अन्याय के मार्ग पर चलकर वह अपने पिता का धन बरबाद किया करता।
एक दिन उसके पिता ने तंग आकर उसे घर से निकाल दिया और वह दर-दर भटकने लगा। भटकते हुए भूख-प्यास से व्याकुल वह महर्षि कौंन्डिन्य के आश्रम जा पहुँचा और हाथ जोड़ कर बोला कि मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो। तब महर्षि कौंन्डिन्य ने उसे वैशाख शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी के बारे में बताया। मोहिनी एकादशी के महत्व को सुनकर धृष्ट्बुद्धि ने विधिपूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत किया।
इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर बैठकर श्रीविष्णुधाम को चला गया। इस प्रकार यह मोहिनी एकादशी का व्रत बहुत उत्तम है। इसके पढऩे और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है।
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