भारतीय संस्कृति में कार्तिक मास की पूर्णिमा का धार्मिक एवं आध्यात्मिक माहात्म्य है। दीपावली, यम द्वितीया और गोवर्धनपूजा के अलावा इस मास के सांस्कृतिक पर्वो में यह पर्व असीम आस्था का संचार करता है। वर्ष के बारह महीनों में यह कार्तिक मास धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से विशेष महत्व का है। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान की प्राचीन परम्परा है। इस तिथि को ब्रम्हा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि का दिन माना गया है। इस दिन किए हुए स्त्रान, दान, हवन, यज्ञ व उपासना आदि का अनन्त फल प्राप्त होता है। सायंकाल देवालयों, मंदिरों, चोराहों व पीपल के वृक्ष, तुलसी के पौधे में दीपक जलाये जाते हैं और गंगाजी को भी दीपदान किया जाता है जिसका विशेष महत्व माना गया है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यदि कृत्तिका नक्षत्र हो तो यह महाकार्तिकी का दिन माना गया है । जो व्यक्ति पूरे कार्तिक मास में स्त्रान करता है उसका फल कार्तिक पूर्णिमा के दिन अवश्य मिलता है। इस दिन श्री विष्णु व श्री महादेव शिव की आराधना तथा श्रीसत्यनारायण जी की कथा सुनी जाती है। कार्तिक पूर्णिमा से आरंभ करके प्रत्येक पूर्णिमा को व्रत व जागरण करने से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।
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