आषाढ़ माह की कृष्णपक्ष की योगिनी एकादशी व्रत के नियम पालन दशमी की रात्रि से ही शुरु करें। इस व्रत का पालन करने वाले को दशमी के दिन से ही तन, मन से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और स्त्री प्रसंग से दूर रहना चाहिए।
- एकादशी के दिन यथा संभव उपवास करें। उपवास में अन्न नहीं खाया जाता यानि बिना भोजन किए इस व्रत को किया जाता है। संभव न हो तो एक भुक्त या नक्त व्रत रखें। यानि एक समय रात्रि में भोजन करें।
- एकादशी को जुआ खेलना, परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, संभोग, क्रोध तथा झूठ बोलना इन बातों का त्याग करें।
- एकादशी के दिन प्रात: स्नान करके श्री विष्णु की पूजा विधि विधान से करनी चाहिए।
- इसके बाद भगवान पुण्डरीकाक्ष यानि विष्णु का यथोपचार पूजा करें। भगवान विष्णु को पंचामृत स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़के और उस चरणामृत को पिएं। माना जाता है कि इससे विशेष रुप से कुष्ठ रोगी की पीड़ा खत्म होती है और वह रोगमुक्त हो जाता है।
गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री से पूजा करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं उनकी कथा सुने। भगवान विष्णु मंत्रों से आराधना एवं व्रत कथा का पाठ करें।
- तन, मन से हिंसा का त्याग करें और किसी की बुराई न करें। यथासंभव रात में जागरण करें भजन, कीर्तन एवं श्री हरि का स्मरण करें।
योगिनी एकादशी व्रत के ऐसे पालन से सभी रोग और व्याधियों का अंत होता है। साथ ही मन से अलगाव की भावना मिट जाती है और बिछुड़े परिजन या संबंधी से मिलन होता है।
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