कर्णवेध, कर्णछेदन, कानछेदन, संस्कार
हिन्दू धर्म संस्कारों में कर्णवेध संस्कार नवम संस्कार है। यह संस्कार
कर्णेन्दिय में श्रवण शक्ति की वृद्धि, कर्ण में आभूषण पहनने तथा स्वास्थ्य
रक्षा के लिये किया जाता है। विशेषकर कन्याओं के लिये तो कर्णवेध नितान्त
आवश्यक माना गया है। इसमें दोनों कानों को वेध करके उसकी नस को ठीक रखने के लिए उसमें सुवर्ण कुण्डल धारण कराया जाता है। इससे शारीरिक लाभ होता है। कर्णवेध संस्कार इसका अर्थ ही है - कान छेदना। हमारी सनातन परंपरा में कान और नाक छेदे जाते है । यह संस्कार जन्म के छह माह बाद से लेकर पांच वर्ष की आयु के बीच किया जाता है । इसके दो कारण हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है। इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है।
Karnavedh
(Piercing the child's ear lobes). With the commencement of Surya Puja; the father should first address the right ear of the child with the mantra "Oh God may we hear bliss with our ears", performed so that child may listen to good things and to have a good education.
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