मार्कण्डेय महादेव के रुद्राभिषेक व दर्शन से होती है पुत्र संतान की कामना पूरी, पति को मिलती है लम्बी आयु, इसी स्थान पर महादेव ने प्रगट होकर यमराज को किया था परास्त और मार्कण्डेय ऋषि को दिया था अजर अमर (चिरंजीव) होने का वरदान...
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वाराणसी से करीब 30 किमी दूर गंगा-गोमती के संगम तट पर स्थित मार्कंडेय महादेव मंदिर । जहाँ ऋषि मृकंडू और उनकी पत्नी ने पुत्र रत्न की उत्पत्ति के उद्देश्य से भगवान शिव से वरदान पाने के लिए उनकी अराधना शुरू की। महादेव् उनकी अराधना से प्रसन्न तो हुए लेकिन उनके सामने एक शर्त रखी कि उन्हें एक ऐसा पुत्र चाहिए जो बेहद बुद्धिमान और विलक्षण प्रतिभा का हो, लेकिन अल्पायु में मृत्यु लिखी हो या फिर एक ऐसा पुत्र जो बुद्धिहीन लेकिन दीर्घायु हो।
मृकांडु और उनकी पत्नी मरुदमती ने शिव से अल्पायु लेकिन बुद्धिमान पुत्र की मांग की और शिव ने उन्हें वरदान के रूप में मार्कण्डेय जैसा विलक्षण बालक दिया। मार्कण्डेय की नियती में 16 वर्ष की आयु में ही मृत्यु लिखी थी। जैसे-जैसे मार्कण्डेय की उम्र बढ़ती गई, शिव के प्रति उनका समर्पण भी बढ़ता गया। जिस दिन उनकी मौत निश्चित थी, उस दिन भी वे शिवलिंग की पूजा में व्यस्त थे। ऋषि मार्कण्डेय पूरे समर्पण भाव के साथ शिव की पूजा में लीन थे जब यमदूत उन्हें लेने आए तो वह उनकी पूजा में विघ्न डाल पाने में सफल नहीं हुए।
यमदूत को असफल होते देख स्वयं यमराज को मार्कण्डेय को लेने धरती पर आना पड़ा। यमराज ने एक फंदा मार्कण्डेय की गर्दन में डालने की कोशिश की लेकिन गलती से वह फंदा शिवलिंग पर चला गया। यमराज की इस हरकत पर शिव को क्रोध आ गया और वह अपने रौद्र रूप में यमराज के समक्ष उपस्थित हो गए। शिव और यमराज के बीच एक बड़ा युद्ध हुआ, जिसमें यमराज को हार का सामना करना पड़ा।
शिव ने बस एक शर्त पर यमराज को छोड़ा कि उनका ये भक्त (ऋषि मार्कण्डेय) अमर रहेगा। इस घटना के बाद शिव को कालांतक भी कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है काल यानि मौत का अंत करने वाला। सती पुराण में उल्लिखित हैं कि स्वयं पार्वती ने भी मार्कण्डेय ऋषि को यह वरदान दिया था कि केवल वही उनके वीर चरित्र को लिख पाएंगे। इस लेख को दुर्गा सप्तशती के नाम से जाना जाता है, जो कि मार्कण्डेय पुराण का एक अहम भाग है।
यहाँ शंकर भगवान के मन्दिर के गर्भगृह में ही दिवार में मार्कण्डेय महादेव की पूजा होने लगी। लोगों का ऐसा मानना है की यहां राम नाम लिखा बेलपत्र व एक लोटा जल चढाने से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है । आगे चलकर मार्कण्डेय ऋषि ने अनेकों अतिमहत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की जिनके मार्कण्डेय पुराण व देवी भागवत विशेष महत्वपूर्ण है और दुर्गा शप्तशति इसी मार्कण्डेय पुराण का हिस्सा है ।
यहां पुत्र रत्न की कामना व पति के दीर्घायु की कामना को लेकर लोग आते है। यहां महामृत्युंजय, शिवपुराण, रुद्राभिषेक व सत्यनारायण भगवान की कथा का भी भक्त अनुश्रवण करते हैं।
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