कुंडली मिलान में नाडी दोष के प्रभाव व निवारण, उपाय, Astrology Solution For Nadi Dosh



03 Mar, 2012

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भारतीय ज्योतिष में कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाए जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किए जाते हैं। विवाह में वर-वधू के गुण मिलान में नाड़ी का महžव सर्वाधिक माना जाता है। 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सबसे अधिक 8 गुण निर्धारित हैं। इसी से गुण मिलान की विधि में इन दोनों के महत्व का पता चल जाता है। नाड़ी को या तो सारे के सारे या फिर शून्य गुण प्रदान किए जाते हैं, अर्थात नाड़ी को 8 या 0 अंक प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में नाड़ी दोष बन जाता है। नाडियां तीन होती हैं-आद्य, मध्य और अन्त्य। इन नाडियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है। वर-वधू की समान नाड़ी होने पर दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है। शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि नाड़ी दोष केवल ब्राह्मण वर्ग में ही मान्य है। समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है। आयुर्वेद के सिद्धांतों में भी तीन नाडिया- वात (आद्य), पित्त (मध्य) तथा कफ (अन्त्य) होती हैं। शरीर में इन तीनों नाडियों के समन्वय के बिगड़ने से व्यक्ति रूग्ण हो सकता है। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार नाड़ी दोष को अत्यंत हानिकारक माना जाता है तथा ये दोष वर-वधू के वैवाहिक जीवन में अनेक तरह के कष्टों का कारण बन सकते हैं और वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु का कारण तक बन सकते हैं। तो आइए आज भारतीय ज्योतिष की एक प्रबल धारणा के अनुसार अति महत्वपूर्ण माने जाने वाले इस दोष के बारे में चर्चा करते हैं। साथ ही जानते है इनसे प्रमाणिक उपाय ।

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